Bal Satyartha Prakash

बाल सत्यार्थ प्रकाश

( संसार के महान् मार्गदर्शक ग्रन्थ का संक्षिप्त रूपान्तर ) प्रस्तुतकर्त्ता स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती

 भूमिका

 सत्य और असत्य का विवेक, धर्मं और अधर्म की व्याख्या, प्रभु से मिलने का मार्ग-दर्शन यदि किसी ग्रन्थ में एक स्थान पर खोजना हो तो वह ग्रन्थ है "सत्यार्थप्रकाश" |

 सत्यार्थप्रकाश 'सत्य' का ऐसा प्रकाश-स्तम्भ है जिसे पढ़ कर मन और मस्तिष्क पर छाया अज्ञान-तिमिर स्वतः समाप्त हो, ज्ञान और सत्य प्रकट होकर, अन्तर को आलोक से भर देता है | धर्मं के नाम पर अधर्म, पुण्य के नाम पर पाप और सत्य के नाम पर असत्य तभी तक कहीं रह सकता है जब तक की वहां "सत्यार्थप्रकाश" नहीं पहुँचा |

 वस्तुतः आज भटके हुए मानव समुदाय को मृत्यु-मार्ग से हटाने और जीवन-पथ पर चलाने की सामर्थ्य यदि किसी एक ग्रन्थ में है तो वह है 'सत्यार्थप्रकाश'

 'सत्यार्थप्रकाश' उस महान् व्यक्ति की रचना है जिसने जीवनभर कभी असत्य से समझौता नहीं किया, जिसके मन मे कभी किसी के प्रति एक पल के लिए भी द्वेष नहीं उभरा, जो मनुष्यमात्र के उत्थान और कल्याण के लिये मृत्युपर्यन्त संघर्ष रत रहा | जिसके ह्रदय मे सभी के प्रति माँ की ममता और स्नेह का सागर उमडता था |

 ऋषि दयानंद का खंडन किसी मतविशेष के प्रति विरोध का सूचक न होकर अज्ञान, अधर्म और असत्य की समाप्ति के लिए था | वे चाहते थे कि-

 (१) मनुष्य अपने जीवन का लक्ष्य जाने और एक परमात्मा को अपना उपास्य देव मान मोक्ष-मार्ग का पथिक बने |

 (२) वे मनुष्य और मनुष्य के मध्य खड़ी भेद-भाव की दीवारों को मानवजाति के पतन और द्वेष का कारण मानते थे, इसलिये उनका लक्ष्य मनुष्यों के चलाये मतवादों को समाप्त कर धर्म के उस स्वरुप को स्थापित करना था, जिसमें, व्यक्ति, देश, काल, जाति, वर्गविशेष के लिये कोई पक्षपात न हो |

 (३) सत्य, प्रेम, न्याय और ज्ञान ऋषि के अस्त्र थे | इन्ही के बल पर, इन्ही का प्रसार उनका इष्ट और मनुष्यमात्र की उन्नति उनका परम लक्ष्य था |

 उ़स महन् ग्रन्थ को बच्चों और जनसाधारण तक पंहुचाने के पवित्र उद्देश्य से स्वामी श्री जगदीश्वरानन्दजी सरस्वती ने अपने वर्षों के स्वाध्याय के आधार पर यह बाल सत्यार्थप्रकाश लिखकर महत्वपूर्ण कार्य किया है | इस ग्रन्थ को हम सत्यार्थप्रकाश की कुंजी भी कह सकते हैं |

जनमानस में ज्ञान के अंकुर उगाने मे यह प्रयत्न सफलता प्राप्त कर सकेगा, इस विश्वास के साथ सादर यह अनमोल ग्रन्थ आपकी सेवा मे प्रस्तुत है |

प्रभु हमारे मन और मस्तिष्क में ज्ञान ज्योति जाग्रत करें-

आशीर्वाद के साथ

 -भारतेन्द्र नाथ